बदलते संस्कार।
बदलते संस्कार।
बदलते संस्कार से सामाजिक जीवन भी तो बदल रहा है।
दो पीढ़ियों में अंतर देखो
अब कितना बढ़ रहा है।
कोई किसी को समझ ना पाता,
इंटरनेट का युग है यह,
जीना मुश्किल होगा उसको जिसको मोबाइल भी चलाना नहीं आता।
बुजुर्ग और बुजुर्ग हो गए
बच्चे जल्दी बड़े हो गए।
मोबाइल लेकर देखो दोनों आमने सामने खड़े हो गए।
त्योहारों का भी तो देखो अब कोई शौक ना रहा।
जिसके जो भी मन में आए वह वही त्यौहार मना रहा।
समय बदला बदले संस्कार
सामाजिक मूल्य बदले और बदले परिवार।
परिदृश्य बदले और बदले परिधान।
पीछे रह गए संस्कार हमारे नई पीढ़ी ने किया पाश्चात्य सभ्यता का उत्थान।
कैसे डाले बच्चों में संस्कार
हुए माता-पिता परेशान।
एकल परिवार का समय आ गया।
दादी नानी से तो होती है सिर्फ मोबाइल से पहचान।
इस नए जमाने में किसी से भी आशा क्या करें।
अब तो हम मन में आता है सिर्फ यही विचार कि परमात्मा ही खुद आ कर कैसे भी डाले बच्चों में संस्कार।
