शिवरात्रि
शिवरात्रि
भोले - भाले प्यारे शंकर
मोती बन जाए छूते ही कंकर।
जटा में शिवजी की गंगा विराजे
गले में नाग, हाथ में डमरू साजे।
नष्ट करे सबका अहंकार
मनोकामना करते हैं साकार।
भस्म लगाये अंगों पर
गंगाधारी हैं चंद्रशेखर।
फाल्गुन की चतुर्दशी है आई
शिवरात्रि की बहार लायी।
शिव - पार्वती के विवाह की रात
दोनों नृत्य करते साथ - साथ।
दर्शन करने सब मंदिर जाते
शिव-पार्वती जी को हैं मनाते।
दूध, फूल, फल- जल है चढ़ाते
बेलपत्र और भांग- धतूरे से हैं पूजते।
भक्त गण सभी व्रत हैं रखते
सारी रात शिवगुण गाते।
शिवजी के हैं रूप अनेक
ओम का जाप करो बस एक।
शिवजी हैं आदि और अंत
कहते हैं सभी साधु और संत।
