महिला दिवस
महिला दिवस
सुदूर, मन की गहरी कंदराओं में सुप्त,
कुछ चरित्रों को, फिर से गढ़ती है,
हां वो कविताएँ लिखती है ,
रोज-रोज, नए चरित्रों को,
अपनी जरूरतों के परिधान पहना,
पुलकित होती है, हंसती है---
उसके गढ़े किरदार---
विद्रोही होते है,
जवाब देते हैं,
मौन से मुखर होते है,
सर झुकाए, सबकी इच्छा से नही चलते है,
उसके पात्र उसकी दमित इच्छाओं के
जीवित किरदार होते हैं---
उसका हर शब्द उसके अंदर,
मर रहे को जीवित कर जाता है
उसे सही को सही ,गलत को गलत,
कहने की हिम्मत दे जाता है,
अपने लिखे किरदारों को जीती,
वो नारी नही बेचारी है,
सशक्त हाथ,
दूसरों की डोर उसके हाथों की---
उंगलियों में बांध आते है,
किंतु,इसके दृढ़ इरादे बताते हैं
न वो नाचेगी न नाचायेगी---
खत्म कर ये कठपुतली राज,
दोयम से अव्वल दर्जे पर ---
आकर ही दिखाएगी।