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आत्ममंथन

आत्ममंथन

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दिए दिन महीने बरस

जीवन के अनमोल पल

तुम्हारी तल्खियों से आहत

ज़ख्मों को छुपा

मुस्कान की सौगात दी

कोमल भावनाएँ

इच्छाओं की आहूति दी

कायम रखी

तुम्हारी मिलकियत

वज़ूद को मिटा कर

फिर भी

तुम छीनते रहे मुझसे

मेरे हिस्से का वक्त

तुम्हें मंजूर नही

मेरा खुद के लिए

जीना

तृप्त ना हो सकी

तुम्हारी इच्छाएँ

छीन लेना चाहते हो

मेरा आस्तित्व

मेरी अभिलाषाएं

मेरा सब कुछ

हक़ से लेने वाले

कभी सोचा

तुमने मुझे क्या दिया ?

कभी आत्ममन्थन करना !!


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