गृहणी हूँ ना
गृहणी हूँ ना
गृहणी हूँ ना !
नहीं आता तुकान्त-अतुकान्त
मैं नहीं जानती छन्द-अलंकार
लिखती हूँ मै,
भागते दौड़ते, बच्चों को स्कूल भेजते
ऑफिस जाते पति को टिफिन पकड़ाते
आटा सने हाथों से बालों को चेहरे से हटाते
ब्लाउज की आस्तीन से पसीना सुखाते
अपनी भावनाओं को दिल में छुपाते,
मुस्कुराते,
सारे दिन की थकन लिए
रात में आते-आते बिस्तर तक
लिख कर पूरी कर लेती हूँ कविता
गृहणी हूँ ना !!
बस ऐसे ही लिखती हूँ
अपनी कविता ||