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बुजदिली का बोध

बुजदिली का बोध

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मेरे अंतर्मन की सूक्ष्म भावना,

उसकी दिशा पर मुझे गर्व था

मेरी माया, मेरी ममता का उमड़ना

मेरा प्रेम, मेरी चाह का उछलना

मेरा समर्पण वंदनीय

मेरा दुख, मेरी वेदना

मेरे आनंद का प्रदर्शन

मेरी भक्ती का आडंबर,

मेरी श्रद्धा का स्थान उज्वल

सब मेरा, मेरा, मेरा ही था

और वही सब सही था।

जब देर रात, बीच सड़क पर

मटमैले वस्त्र, बिखरे बाल,

थरथराती देह, फड़फड़ाते हाथ,

ऑखों मे क्रोध से छलछलाते आँसू

लगातार लाईं से फूटते अंगारे

उसे लूटकर गाड़ी में भागते

नौजवानों के नाम

अंधेरे को काटती उसकी आवाज

मेरे कान, मेरी नजर

उसकी दशा पर थूक रही थी

मेरी बुजदिली से

मेरा अभिमान चूर चूर हुआ

न भागती गाड़ी का नंबर नोट किया

ना रंग देखा नीचे उतरकर

न उसके सिर पर हाथ फेरा

मेरे अंतर्मन के सूक्ष्म भावना

उसकी सही दिशा का अभिमान टूट चुका ।


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