Zeba Rasheed

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Zeba Rasheed

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असम्भव जीत

असम्भव जीत

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समय बहता हुआ

काश

बंद हो पाता

मेरी मुट्ठी में

होती मेरी

असम्भव जीत।


हथेलियाँ मेरी

बांधे रहती है

इन लकीरों को

मेरी मुट्ठी में।


झीणें-झीलें क्षण

गिरने लगते है

बालू मिट्टी से।


कोई धागा

बांध पायेगा

इन लकीरों को।



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