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कस्तूरबा

कस्तूरबा

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अपने क्षणों को गाँधी के पथ पे मोड़ते हुए

कभी दासी बनी तो कभी बनी वीरांगना।

स्वच्छ-अनुशासन-शिक्षा समझाती इक निरक्षर

सत्याग्रह की राह अपना के कहलाई बा।

 

अप्रसन्न थे निरक्षरता के कारण पति जिनके

मना था संजना, संवरना और घर से निकलना।

रखा प्रभाव महात्मा से भी ज़्यादा फिर जिन्होंने

और बुराई का भी किया डटकर सामना।

कौन रख सकता अंकुश - समुद्र तो निरंकुश बहा

अपनी ही राह अपना बनी कस्तूर से कस्तूरबा ।


उपवास से झुकाया अंग्रेज अधिकारियों को

किया आह्वानविदेशी कपड़ों के परित्याग का।

बनी बापू खुद ही बापू की अनुपस्थिति में

थी एक प्रणेता 'भारत छोड़ो' की आग का।

और कौन बन सका ऐसी पवित्र अग्नि

कौन हो सका बलिदानी बा सा।


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