हर घर में
हर घर में
हर घर में दिया हो, पर दिल में किसी के
अंधेरा न हो
हर घर में अनाज हो, पर कोई भूखा न हो
हर घर में पानी हो, पर कोई प्यासा न हो
हर घर में छत हो, पर उससे टपकता
पानी न हो
हर घर में घड़ी हो, पर सबको एक दूसरे
के लिए समय हो
हर घर में किताबें हो, पर अल्फ़ाज़ का
सही इस्तेमाल हो
हर घर में टी.वी. हो, पर साथ बैठ के
देखा जाए ऐसे कार्यक्रम हो
हर घर में फ्रिज़ हो, पर पानी मटके का ही
पीते हो
हर घर में आँगन हो, जहाँ बच्चे साथ
मिल के खेलते हो
हर घर में बिस्तर हो, पर जहाँ सुकूँ की नींद हो
हर घर में सौंदर्य प्रसाधान हो, पर दिल से
सब खूबसूरत हो
हर घर में मोबाईल हो, जिसका उपयोग सही
होता हो
हर घर में अगरबत्ती हो, मगर खुश्बू
भक्ति की आती हो
हर घर में मसाले हो, पर उसका थोड़ा
कम इस्तेमाल हो
हर घर में डायनिंग टेबल हो, पर साथ बैठ के
सब खाना खाते हो
हर घर में बिजली हो, पर प्यार की चमक
सबकी आँखों में हो
हर घर में चूल्हा हो, पर किसी को किसी की
जलन न हो
हर घर में बरतन हो, पर आवाज़ उसकी ज्यादा न हो
हर घर में अलमारी हो, पर दिल में सबके जगह हो
हर घर में नारी हो, जिसका हर वक़्त सम्मान होता हो।
