दरिया बनो ओर सागर के चलो।।
दरिया बनो ओर सागर के चलो।।
क्या होगा क्या नहीं सोचते सोचते
चाल चलते क्यों यूँ रुकते रुकते
चलना हो तो चलो लकीर के तरह
सीधे न सही कुछ मुड़ते मुड़ते ।।
सीधी राहों में बाधाएं है बहुत
उन्हें भेदने में दुविधाएँ भी बहुत
रुक जाना बहुत आसाँ है क्यों के
रुक जाने की बहाने भी बहुत ।।
हर सवाल का हल हो नहीं सकता
हर प्रयास सफल हो नहीं सकता
उम्मीद पे ही दुनिया टिकी है वरना
नाउम्मीदी से कोई जी नहीं सकता।।
बहुत धुंधली नहीं फिर भी आसमां
धुंध के ठीक पीछे रोशनी की कारवाँ
आंखें जमाए रखो हवा के होने तक
फिर रोशनी तेरी और तेरी भी आसमां।।
निडर हो चलो डर को डराते चलो
हारो फिर भी हार को हराते चलो
समंदर तालाब मिल सकते नहीं
दरिया बनो ओर सागर के चलो।।