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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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सँवारते हैं

सँवारते हैं

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हम जिंदगी को कुछ यूं सँवारते हैं। 

सौम्यता को पहनकर अपनी भव्यता निखारते हैं।


हम अहित को कुछ यूं नकारते हैं।

 डर को डरा डराकर दूर भगाते हैं।


हर बच्चा अपने आप में खास होता है।  

इसीलिए हम एक तुला में तौलने से नकारते हैं।


हवा में बातें करना फिर इसे ही हवा देना।

ऐसी प्रवृत्तियों को हम फटकारते हैं।


इंसान में इंसानियत को पुकारते हैं। 

कष्टों से तपकर सोना बने व्यक्तित्व को सराहते हैं।


जो दिन में सूरज रात में दीपक बन जाते हैं।

इस गुण के धनी में ही इंसानियत के दर्शन हो पाते हैं।


नफरतों के बाजार में सुरक्षा शब्द उपहास लगता है।

विश्वास विश्वसनीयता का दीया बुझता सा लगता है।


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