वो सब जानती है..!
वो सब जानती है..!
वो कहती कुछ नहीं है
पर जानती सब कुछ है
तुम क्या चाहते हो,
तुम्हारे भाव क्या हैं..!
वो बोलती तो कुछ नहीं
समझने की कोशिश करती है
जब तुम उसको पागल बनाते हो
वो तुम्हारे मस्तिष्क को पढ़ती है..!
वो सहती भी रहती है
जब तुम उसपर जुल्म करते हो,
उसके अंग प्रत्यंग पर कटाक्ष करते हो
पर प्रतिकार नहीं करती है..!
कि उसके रहन सहन चाल ढाल पर
कटु वाणी के बाण चलाते हो,
नियत तुम्हारे दूषित हैं
और कटाक्ष उसके पहनावे पर करते हो,
सोच तुम्हारी दूषित है लांछन उस पर लगाते हो,
वस्त्र छोटे माँ, बेटी, बहन, पत्नी के हो तो...
चरित्रहीन बनाते हो,
प्रेमिका पहने तो सौंदर्य की प्रतिमा बताते हो..!
वो समझती सब है पर कहती कुछ नहीं है,
कभी गौर किया क्या उसकी अश्रु धारा क्यूँ बहती नहीं है...?
वो चुपचाप तुमको देखती है
जब तुम उसको अनपढ़ गवार बोलते हो
और सोचती है उस स्त्री के बारे में
जिसने तुमको जन्म दिया इसलिए नहीं कि
वो एक अनपढ़ गवार स्त्री है, बल्कि इसलिए कि
उसने तुम्हारे जैसे जाहिल को जन्म क्यूँ दिया..?
वो तब भी सोचती है जब तुम
उसके सौंदर्य को लेकर कटाक्ष करते हो,
वो तब तुम्हारे तन और मन दोनों ही के
सौंदर्य का आकलन करती है और सोचती है
तुम्हारे संस्कार और कुल परंपरा के बारे में..!
वो कायर नहीं संस्कारी होती है
तुम्हारे दिये हर घाव हर जख़्म को
सह जाती है, घर की इज़्ज़त के खातिर
ख़ुद को पाषाण बना लेती है और
पी जाती है तुम्हारे दिये अपमान के हलाहल को..!
इस तरह सब कुछ सहते सहते एक दिन
तुम्हारे जीवन में रहकर भी वो दूर निकल जाती है
वो एक दिन जीवित रहते हुए भी सती हो जाती है
हाँ.. वो फिर जीवित सती रह जाती है
अब वो सब कुछ सह सकती है मान-अपमान/
सुख-दुःख सब कुछ पर..
उसके लिए अब कोई मायने नहीं रहता इसका
वो जीवित सती /
वो सब कुछ जानती है
पर अब कहती कुछ नहीं है
कहती कुछ नहीं है...!!!