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Sudhir Srivastava

Tragedy

4  

Sudhir Srivastava

Tragedy

संविधान दिवस

संविधान दिवस

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आइए !

मौका भी है दस्तूर भी है

हमारे मन भरा फितूर जो है,

आज भी हम

संविधान संविधान खेलते हैं,

जब रोज ही हम

पूरी ईमानदारी से खेलते हैंं,

तब आज भला खेलने से क्यों बचते हैं?

चलिए तो सही

आज संविधान दिवस की भी

तनिक औपचारिकता निभाते हैं,

आखिर साल के बाकी दिन हम

संविधान का माखौल ही उड़ाते हैं।

हमें भला संविधान से क्या मतलब

हम तो रोज ही कानून का

मजाक उड़ाते हैं।

कभी धर्म के नाम पर

तो कभी अधिकारों के नाम

तो कभी बोलने की आजादी के नाम पर

अनगिनत बहाने हम ढूंढ ही लेते

संविधान का उपहास उड़ाने के।

संविधान की रक्षा

पालन की कसमें खाते हैं,

पर संविधान में लिखे कानून को

हम कितना मानते हैं?

हिंसा, तोड़फोड़, घर, दुकान

सरकारी संपत्तियों का तोड़फोड़

भड़काऊ भाषण, आपसी विभेद

जातीय टकराव, हिंसा

अलगाववादी विचारधारा

समाज, राष्ट्र में विघटन का षडयंत्र

भ्रष्टाचार, लूटखसोट

सरकारी धन का दुरुपयोग, बंदरबांट

निहित स्वार्थ पूर्ति के लिए

क्या कुछ नहीं होता है?

पर हमें कुछ नहीं दिखता है,

जैसे संविधान और कानून

महज बकवास है,

तभी तो आजादी का अधिकार

अभी तक हमारे पास है।

हमको लगता है

हम संविधान से ऊपर हैं

कानून हमारी मुट्ठी में है,

संविधान में जो लिखा है

हम उससे बहुत ऊपर हैं।

माना कि संविधान की रक्षा

और कानून का पालन

हमारी जिम्मेदारी है,

मगर हम करें भी तो क्या करें?

थोड़ा थोड़ा इनसे खेलने की

हमें बड़ी बीमारी है।


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