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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Tragedy

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Dr Hoshiar Singh Yadav Writer

Tragedy

जैसे कोई चंचल नदी हो

जैसे कोई चंचल नदी हो

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जैसे कोई चंचल नदी हो,देखी उसकी अंगड़ाई,

क्या गजब अदा निराली, छूने को करता परछाई,

सपनों में जो आते जाते,ऐसा ही ख्वाब दिखाया,

देखा जब उसने पलटकर, वो मंद मंद मुस्कराई।


सोच विचार में डूब गये, कैसे उससे मिल पायें,

खाते पीते, सोते जागते,बस वो मन में बस जाये,

अब तो आलम यह हुआ , उसको ही अपनाया,

दिल बार बार यह कहता, दिल न कभी लगाये।


जैसे कोई चंचल नदी हो, ऐसे वो मेरे घर आई,

सुंदर छवि,नयन कजरारे, उस दिन दिल बसाई,

ख्वाब हुये जब पूरे तो,मन में उठने लगे विचार,

क्या मैं इसके काबिल हूं, जग में हो ना हँसाई।


मन मंदिर बड़ा खूबसूरत, चाल अजब निराली,

जोड़ी ऐसी सजी दोनों की, जैसे हो रांझा पाली,

जब दाता की नजरें ठीक नहीं,बिगड़े सारे काम,

ऐसा हाथ छुड़ाया उसने, रह गया जीवन खाली।


बहुत दिनों तक साथ चला ना,लग गई वो नजर,

कहीं हाथ से छीन ना जाये, लगने लगा था डर,

सपने में वो एक दिन खो गई, जागा पाया सच,

जाना होता जग से एक दिन,कोई नहीं है अमर।


बहुत दर्द देकर, चली गई वो, खुद दर्द में डूबी,

पर चेहरे की मुस्कान रही,उसकी थी यह खूबी,

बहुत सोचता हूं अब मैं, क्या खेल दाता खेला,

आंसुओं में हम डूब गये,देखी वो ऐसी अजूबी।


जैसे कोई चंचल नदी हो,पल में छोड़ा गई घर,

खुशियां सारी छिन गई हैं, भटक रहे हैं दर दर,

बिछुड़े बारह बरस बीते हैं,वो नहीं सामने आई,

सूना सूना घर हो गया है, लगता हम अब बेघर।


लाख पुकारा चलकर आओ,नहीं सुने कोई मेरी,

ध्यान लगाकर मनन करूं, याद आती राख ढेरी,

इस जन्म में धोखा हो गया,अगले पर है आशा,

कोई उसको वापस ला दो, जिंदगी बची भतेरी।


जैसे कोई चंचल नदी हो, सच कर दिखलाया,

अल्हड़ सी घर में आई,क्या खूब रंग दिखाया,

बीते दिनों की मरीचिका,दूर कहीं झिलमिलाए,

सोच रहा हूं जग में आ,क्यों कोई दिल लगाये।



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