शोला हूँ
शोला हूँ
महज़ बुझी हुई चिंगारी ना समझो,
भीतर ही भीतर लावा सी आग बाकी है अभी।
तो क्या हुआ की मैं खामोश हूँ,
चित्कार का शोर बाकी है अभी।
कमज़ोर नहीं कातिल हूँ,
कटार की धार सी कंटीली घायल हिरनी का वार बाकी है अभी।
आहटहीन करार ना दो मुझे तो क्या हुआ की सन्नाटे का मंज़र है,
दिल में मेरे बवंडर का धमासान बाकी है अभी।
लहरों की गुनगुनाहट मत गिनों,
गहरे दरिया का सीमाएं लाँघना बाकी है अभी।
हवाओं में दम नहीं जो तिनका समझकर उड़ा ले जाए
नीड़ का बुनना बाकी है अभी।
बंद पलकों के मौन को पड़े रहने दो,
आँसूओं के सैलाब का आना बाकी है अभी।
नतमस्तक को बेबसी की मूरत ना समझो
सर उठने पर प्रतिघात का ज़लज़ला आना बाकी है अभी।
