बंदिशे
बंदिशे
यह कैसी बंदिशे यह कैसी रिवायतें
सांस को रोकती है तमाम तरह की बातें
जैसे पिजरो में बंद यह औरतें
बस सहने को होती है,तमाम तरह की तोहमतें
यह कैसी........................ ....
कहने को आदम और हब्बा की हम औलादें
सब की बराबर की चाहतें
सब का बराबर का किरदारर
ताउम्र क्यों धुटती है औरतें
यह कैसी ........................................
जिस किरदार ने अपना किरदार ईमानदारी से
सारी
उम्र सहती रही वफादारी से
बस चुपचाप सहती रही ,
माँ बहन बेटी माशूका बन बन कर रहती रही
यह कैसी..........................
कभी तेजाब ने जलाया कभी दहेज ने सताया
कभी हिजाब पहनाकर घर में बिठाया
दीनो धरम माहवारी ने सताया
यह कैसी ......... . ...........
यह औरत हर बार बाजारों में बिकती रही
बाप भाई शौहर महबूब की सहती रही
वह क्या चाहती है बताने को सिसकती रही
यह कैसी।