STORYMIRROR

Nandita Srivastava

Abstract

4.0  

Nandita Srivastava

Abstract

एतबार खो गया है

एतबार खो गया है

1 min
83


मेरा एतबार हो गया है,

लगता है,कुछ खो गया है

बस बिखर गया हूँ

अपने आप में खो गया है

मेरा एतबार............

खुशी की तलाश में शायद

बिखर गया हूँ,

भरोसे का दामन हाथ से

छिटक गया है,

मैं तनहा ही बैठ गया हूँ

मेरा ऐतबार..............

सोचा क्या था? और मिला क्या है?

अपनी ही गमों में गुम हो गया हूँ?

यह दुनियावी तमाशे में

बुरी तरह से खो गया हूँ

मेरा एतबार.................

मेरा भरोसा खेलता है

आँख मिचौली,में

कंचे की तरह खो गया है

मेरा ऐतबार।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract