यह कैसी फिजा है
यह कैसी फिजा है


यह कैसी फिजा है,बदलता आशियाँ है
पैर तलो से निकलता यह जमीं यह आसमां है
हर तरफ शोर नफरतों का दौर,
यह कैसी जमीं यह कैसा आंसमा है
यह कैसी फिजा है...
जो देखे चंद सिक्के ,बस अपनी ही दुनियाँ
अपना आंसमा है,यह गिरगिट की तरह रंग
बदलते लोग,हर बस साजिशों का शमा है,
यह कैसी फिजा.....................
जो पायी अपनी मंजिल.तो हमको धकेला
सर हमारे पाव रख कर चले गये अकेले
ना मौला से डरना ,बस ढक बेईमानी का
चले गये अकेले...
किसी का डर है ना खुदा से फसाना
यह देखो जरा सा कैसा आ गया जमाना
जब जरूरत है तुम्हरी तब गले से लगाया
बिना बात के तुमको तोहमत लगाकर किनारे बैठाया
यह कैसी फिजा..................