कुदरत के टूटे ख्वाब की दास्तान
कुदरत के टूटे ख्वाब की दास्तान
इन लफ्जों में कुछ खास है।
कविता में अधूरा ख्वाब है।
जरा कान लगाकर सुनना क्या राज है।
सुनो बच्चो कहानी एक बार की,
समय के इस चक्कर और नयी दास्तान की।
मिट्टी का माधो जब जमीन पे आया,
कुदरत ने इसे बङे प्यार से बनाया।
इसके लिए सुन्दर घर बनाया,
तब धरती को खूब सजाया।
पेड-पौधौं को यहां बनाया,
जल से नदियों को रुश्नाया।
पशु-पंछीयो को भी बनाया,
मनुष्य का साथ बढाया।
हाथ में उसके एक ख्वाब पकङाया,
इन सब को खुश रखने का जिम्मा बताया।
दिल उसका इन सब पे आया,
लेकिन शैतानने आकर उसे भङकाया,
उसको उन्नति का पाठ पढाया।
सुनकर मनुष्य खुश हुआ,
कुदरत से जरा अलग हुआ।
सोचने लगा कुछ नया है करना।
फैक्टरीयों और वाहनों का आविष्कार है करना,
दिमाग में उसने एक बत्ती जलाई,
पेङों को काटकर फैक्टरी बनाई।
कैमीकलो को बुलावा भिजवाया,
इनको पानी के साथ मिलाया।
शैतान की चाल अभी भी बाकी थी,
खतम करनी अब जानवरों की जाति थी।
उसने मनुष्य को और ललचाया,
जानवरो को काटकर खाना सिखाया।
पशु-पंछीयो को भी खूब रुलाया,
तभी तो कोरोना का काल मंङराया।
कुदरत का ख्वाब तोङ ङाला,
वातावरण का विनाश कर ङाला,
जरा सोचना एक बार बैठ कर,
अपने किये कामों को भाप कर।
माथे पे हाथ रख कर तू रोयेगा,
टूटा ये ख्वाब तेरे दिल को चोट देगा।
टूटा ये ख्वाब तेरे दिल को चोट देगा।
