.....और जनता कंगाल हो गयी
.....और जनता कंगाल हो गयी
चुनावी रंग में रंग रही जनता, नेताजी भाषण दे रहे।
मिल नेता संग कार्यकर्ता, मतदाता को माखन लगा रहे।
कभी पक्ष तो कभी विपक्ष, एक दूसरे पर लाँछन लगा रहे,
अपना मूल्यांकन कोई न बताए, दूसरों का छाँटन करा रहे।
कर बौछार जुमले वादों का, पार्टियां सारी मालामाल हो गयी,
कोई न पूछत पिछले मुद्दों को, और जनता कंगाल हो गयी।
भोली रे मेरे देश की जनता, और जनता कंगाल हो गयी।।
अन्न मूल्य को तरसे अन्नदाता, न्यूनतम मूल्य भी नही मिल रहा,
धरने पर बैठा अन्नदाता दिल्ली में ,पत्रकार कोई नही दिख रहा।
व्यस्त है मीडिया चकाचौंध में, राजनीति और शाही शादी में,
भूल जय जवान-किसान को,जनसेवक मस्त है अपनी आज़ादी में,
आवाज़ न सुने मेरे अन्न दाता की, देह उनकी कंकाल हो गयी,
देख रे मनवा हालात देश की, और जनता कंगाल हो गयी।
भोली रे मेरे देश की जनता, और जनता कंगाल हो गयी।
नेता बता रहे धर्म जात अपना, अंजान है जनता का सपना,
मंदिर मस्जिद में फंसा जनता को, सीधा कर रहे उल्लू अपना।
कर राजनीति मंदिरों की सत्ता में,भगवान भी बँट गया जातिवाद में,
मानवता की सब हदे पार कर, लड़ रही जनता आपसी विवाद में।
मँहगाई बेरोजगारी से व्याकुल जन,सरकारे सारी निहाल हो गयी,
भूल गए जनसेवक जनता को, और जनता कंगाल हो गयी।
भोली रे मेरे देश की जनता, और जनता कंगाल हो गयी।।
