हाँ ! मैं किसान हूँ...।
हाँ ! मैं किसान हूँ...।
अन्न दाता हूँ, पालनकर्ता हूँ।
रसूखदारों के झोले, मैं भरता हूँ,
कभी सूखा, तूफ़ां, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि,
कोसूं किस्मत को या खुद को, मैं हैरान हूँ,
मैं परेशान हूँ, हाँ मैं किसान हूँ।
मुझे गर्व था, मैं जय जवान था , जय किसान था,
पेट भरके भारत का, मैं देश का अभिमान था,
धरती मेरा आशियाना, मिट्टी का मैं पहचान हूँ,
गवाही छाले मेरे पांव के, साहूकार का कर्ज़दार हूँ,
अडिग सर्दी गर्मी हर मौसम में, मैं ईमानदार हूँ,
आज मैं परेशान हूँ, हाँ मैं किसान हूँ।
नन्हे बिलखते तरसते फटे कपड़ों में मेरे बच्चे,
आँखों में लिए अगली फसल के सपने अच्छे,
सुरक्षा, मूल जरूरतों के बनुयादी आशियाने कच्चे,
बिक जाऊं खुद लेकिन जमीर के कितने सच्चे,
खैरात कुछ नहीं चाहता, बस,
मेहनत का स्वाभिमान हूँ, हाँ, मैं किसान हूँ।
तिजोरी उनकी भर दी मेरी मेहनत की कमाई ने,
मेरी कमर तोड़ दी उनके खाद बीज की महंगाई ने,
कागज़ में पन्नों में दिखते रहे मेरी उन्नति के आंकड़े,
मैं दम तोड़ता रहा खेत मे, चलाते हल और फावड़े।
लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था का, मैं असली चौकीदार हूँ।
मेरे हिस्से का हक़दार हूँ, देश के प्रति वफादार हूँ।
ना मज़हब, ना प्रान्त, ना कोई सियासी दल,
मैं सिर्फ बोलता हिंदुस्तान हूँ, हाँ मैं किसान हूँ।
सियासतें आती है, और चली जाती है,
मेरे नाम से बस राजनीति चलती जाती है,
आका बंद वातानुकूलित चारदीवारों में,
भविष्य अच्छा बताते है, समझाते है,
लेकिन मैं वर्तमान हूँ,
एम.एस.पी., ए.पी.एम.सी. से अनजान हूँ,
हाँ मैं नादान हूँ,
भारत की शान हूँ , मैं किसान हूँ
मैं परेशान हूँ, हाँ मैं किसान हूँ।
