हक की लड़ाई..।
हक की लड़ाई..।
अपने हक की लड़ाई तुम, तन्हा ही लड़ना सीख लो,
अपनी जीत का परचम तुम लहराना सीख लो,
गर जीना नहीं आता, तो मरना ही सीख लो,
खरीद कर आज की दिहाड़ी से कफ़न,
उसके हर खूंट पर खून से इंकलाब लिख लो,
मज़बूरी नहीं ये जरुरत है तुम्हारी अभी आज,
हक़ के खातिर अंतिम सांस तक लड़ना सीख लो।
अपने हक की लड़ाई तुम, तन्हा ही लड़ना सीख लो॥
वो तुम्हे कुचल दे, लाठियां बरसा दे, जिन्दा जला दे,
त्याग फूलों का बिछोना, काँटों के पथ पर चलना सीख लो,
वो खा कर तुम्हारे हक़ की मलाई,
तुम्हारे पर ही चिल्लायेंगे, खामोश ! तुम्हे डराएंगे,
सामने तुम्हारा ही कोई अपना होगा,
कुनबा कोई तुम्हारे साथ ना होगा,
मगर सत्य के लिए अपनों से लड़ना सीख़ लो,
झूंठ का नंगा नाच छोड़, हकीकत में जीना सीख़ लो।
अपने हक की लड़ाई तुम तन्हा ही लड़ना सीख लो।
तुम्हे ललचायेंगे, मचलाएँगे , वो मौकापरस्त लोग,
बगावत से भरे सैलाब में, शूलों पर चलना सी
ख लो,
निशब्द हो जाएगी आगामी पीढ़ी तुम्हारी,
ख़ाख़ में मिल जाएगी आज़ादी तुम्हारी,
हुक्मराँ तुम्हारे अपनी मस्ती में है मस्त,
मकबरों में चाहे जीवन हो जाये अस्त,
गर ज़मीर ज़िंदा है तुम्हारा, तो फिर हुंकार भरना सीख लो,
याद कर कुर्बानियां पूर्वजों की, गद्दारों से लड़ना सीख़ लो।
अपने हक़ की लड़ाई तुम तन्हा ही लड़ना सीख लो॥
अगर ज़िंदा रहना है तो फिर हालात से लड़ना सीख लो,
अपनी मज़ार पर दो दीये पहले ही जलाना सीख लो,
उनके ज़ुर्म के इल्ज़ाम तुम पर होगा,
ये सब ज़ुल्म तुम्हे हँस के सहना होगा,
खतरे में इंसानियत होगी, नाम किसी का धर्म होगा,
कागज के चंद टुकड़ों में, नीलाम तुम्हारा दर्द होगा,
वाहवाही होगी बस, नवाबों, गद्दारों की,
क्यों व्यकुलता नहीं है तुम्हे अपने अधिकारों की,
जर्जर पड़ी अपनी अस्मत को, लुटेरों से बचाना सीख लो,
विपरीत रूखी हवाओं के रुख को मोड़ना सीख लो,
अपने हक़ की लड़ाई तुम तन्हा ही लड़ना सीख लो॥