सोने का पिंजरा
सोने का पिंजरा
सोने के पिंजरे की
चमक की चुभन
सलाखों की दम घोटती घुटन
कुंदन के निवाले
रतन जडी दीवारें
मखमली कक्ष शयन
रातें डसती भुजंग सी
जहरीली तरंग सी
सुकू ढूँढ़ते सहमे नयन!
भटकती आशाएं
कराहते सपने
विवशता के दतरे में
पिसती मंन की कुढन
सोने के पिंजरे की
चमक की चुभन!
तन को घूरते नोचते
गिध बने झरोखे
मन को चीरते फाडते
ताले जड़ें तहखाने
धम्निया नीली रक्त सी
सांसे होती सख्त सी
लगा ह्रदय फड़फडाने !
नतमस्तक हौसले
विश्वास खोखले
आत्मा के ज्वार मंथन में
नरक की छुअन
सोने के पिजरे की
चमक की चुभन!
