समाज के कड़वे सच
समाज के कड़वे सच
चौराहों पर जलते ख़्वाब देखें है
इन आँखों ने दम घोंटते
वक्त के कड़वे खेल देखें है
समाज के कड़वे सच देखें हैं
कहीं भावनाओं पर चढ़े
खोखले गिलाफ देखें है
कहीं रिश्तों पर मौत के
दस्तखत ए सवाल देखें है
कई बार आँखों ने मून्द
लिया खुद को
मगर दिल और दिमाग ने
कराहते सन्नाटों के ह्रदय में
भूचाल देखें है
कभी नन्हीं कली को मसलते
दरिंदगी के हाथ देखें है
न्याय की गुहार केमाटी के गले पर
सोन
े के भेडियों के वार देखें है
कभी हीरे जड़ी चौखट से आते
लालच की आग के गुबार देखें है
दहेज के तराजू पर तुलते
अहसास देखे है
कभी धर्म के फंदे पर लटके
मानवता के तन देखें
आतंक में भस्म होते
चमन के बदन देखें है
कई बार जिन्दगी ने जिन्दगी के
मजबूर हालात देखें है
जिन्दगी की आँखों में
अफसोस के रेगिस्तान देखें है
चौराहों पर जलते ख़्वाब देखें है
इन आँखों ने दम घोटते
वक़्त के कड़वे खेल देखे है