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निशा परमार

Abstract Drama Crime

4.5  

निशा परमार

Abstract Drama Crime

समाज के कड़वे सच

समाज के कड़वे सच

1 min
669


चौराहों पर जलते ख़्वाब देखें है 

इन आँखों ने दम घोंटते 

वक्त के कड़वे खेल देखें है

समाज के कड़वे सच देखें हैं  


कहीं भावनाओं पर चढ़े 

खोखले गिलाफ देखें है 

कहीं रिश्तों पर मौत के 

दस्तखत ए सवाल देखें है 


कई बार आँखों ने मून्द

लिया खुद को 

मगर दिल और दिमाग ने 

कराहते सन्नाटों के ह्रदय में

भूचाल देखें है


कभी नन्हीं कली को मसलते 

दरिंदगी के हाथ देखें है 

न्याय की गुहार केमाटी के गले पर 

सोने के भेडियों के वार देखें है 

कभी हीरे जड़ी चौखट से आते 

लालच की आग के गुबार देखें है


दहेज के तराजू पर तुलते 

अहसास देखे है 

कभी धर्म के फंदे पर लटके 

मानवता के तन देखें 

आतंक में भस्म होते

चमन के बदन देखें है


कई बार जिन्दगी ने जिन्दगी के 

मजबूर हालात देखें है 

जिन्दगी की आँखों में

अफसोस के रेगिस्तान देखें है 

चौराहों पर जलते ख़्वाब देखें है 

इन आँखों ने दम घोटते 

वक़्त के कड़वे खेल देखे है

 



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