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निशा परमार

Abstract

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निशा परमार

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नयन तारा

नयन तारा

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आँखों का नयन तारा

जिसने पिरोकर बसंत से लम्हों को

अपनी रश्मियों की झालर में

पूर दिये थे चौक

शुभ लाभ के

और कमूरों पर सजे अरमाँनों ने

काढ दी थी चम्पा सी अल्पनायें

नैनों के किनारे किनारे

जहाँ से बहता हुआ

हया का झोंका

झाँक रहा था

पलकों के झीने पट से

और इधर ह्रदय की देहरी पर रखा

सतरंगी ख्वाहिश का दिया

जिसमें जलती सांसों की बाती

टकटकी लगाये ताक रही थी,

उस चंदन सी राह को

जहाँ से गुजरने वाली आहट

करने वाली थी

फूलों की आतिशबाजी

शून्य में खोये हुये स्थिर नभ में

जँहा से घोर अन्धेरी रात

चांद की सवारी कर

लुटाने वाली थी

तारे भरकर अपनी मुट्ठी में

कोरे जीवन पर

मगर एक तूफ़ान जो

बिखेर गया तबाही का मन्जर

और आँखों का नयनतारा

बटोरता रह गया तबाही के

उन खण्डहरों को

चौक,अल्पना ,और दिये की

सिस्कियों के बीच!

 


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