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निशा परमार

Abstract Drama Fantasy

3  

निशा परमार

Abstract Drama Fantasy

तुम आओगे जरूर

तुम आओगे जरूर

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38


रेतीले शुष्क तप्त टीलों पर 

अकस्मात इन्द्रधनुष का उगना 

घनघोर बदरी की छटा के 

साथ रंगीन पर खोलता आसमाँ 

और हँसी के ठहाके लगाती 

कंटीली झाड़ियों पर उगती बेरियां 

पवन की अठखेलियों के संग 

रेत के समुंदर में गोता खाती 

मचलती धूप

घोल कर प्रेम रस में अपनी 

अद्भूत कलाओं को सूरज 

स्वयं बरसने लगा 

शीतल झरना सा 

दो आत्माओं के संगम पर.... 


तृप्ति के झरने से 

अधरों पर गुल खिलाती पाक मुहब्बत 

धड़कनों पर जमीं रज को हटाते 

मखमली जज्बात 

रात रानी बनते ख़्वाब

खिलकर ह्रदय पटल पर

बरसाने लगे प्रेम रंग 

और स्वपन की क्यारियों

ने गुनगुना दी गजल

विरह के लम्हों को 

जज्बात में पिरोकर 

कि यकीन था कि 

जब जिन्दगी छोड़ देगी 

रेत सी उजड़ती राह पर 

तो तुम आओगे जरूर



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