STORYMIRROR

निशा परमार

Abstract Drama Fantasy

3  

निशा परमार

Abstract Drama Fantasy

तुम आओगे जरूर

तुम आओगे जरूर

1 min
47


रेतीले शुष्क तप्त टीलों पर 

अकस्मात इन्द्रधनुष का उगना 

घनघोर बदरी की छटा के 

साथ रंगीन पर खोलता आसमाँ 

और हँसी के ठहाके लगाती 

कंटीली झाड़ियों पर उगती बेरियां 

पवन की अठखेलियों के संग 

रेत के समुंदर में गोता खाती 

मचलती धूप

घोल कर प्रेम रस में अपनी 

अद्भूत कलाओं को सूरज 

स्वयं बरसने लगा 

शीतल झरना सा 

दो आत्माओं के संगम पर.... 


तृप्ति के झरने से 

अधरों पर गुल खिलाती पाक मुहब्बत 

धड़कनों पर जमीं रज को हटाते 

मखमली जज्बात 

रात रानी बनते ख़्वाब

खिलकर ह्रदय पटल पर

बरसाने लगे प्रेम रंग 

और स्वपन की क्यारियों

ने गुनगुना दी गजल

विरह के लम्हों को 

जज्बात में पिरोकर 

कि यकीन था कि 

जब जिन्दगी छोड़ देगी 

रेत सी उजड़ती राह पर 

तो तुम आओगे जरूर



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract