Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

निशा परमार

Abstract

3  

निशा परमार

Abstract

ख्वाब पलते थे

ख्वाब पलते थे

1 min
69


जो ख्वाब पलते थे आँखों में

और सहलाती थी पलकें उनको

प्रेम और स्नेह से 

और सुला लेती थी अपने गोद में

काली पुतली के चारों तरफ

बिखरती थी

ख्वावों की सतरंगी रश्मियाँ

आँखों के समुंदर के

किनारों की भीनी माटी में

सपने सींचते थे चेतन अंकुरण को

हथेली पर उगा लेता था

जीवन स्वयं का प्रतिंबंम

कंटीली पगडंडी पर रोपता

ह्रदय मखमली गुलों की कतार को

हसरतें लगाती नजर का काला टीका

स्वयं को निहार कर क्षितिज के दर्पण में

मंन के झंकृत तारों पर

थिरकती उमन्गों की मधुरिमा

हर लय हर ताल को पिरोता

जीवन का अतरंगी धागा

भावनाओं की तह की

सलवटों को मिटाती

ख्वाहिशों की हथेली

आज जब पीछे पलट कर देखती है

तो खुद को जीवन के छोरों की तुरपाई

करती नजर आती है

बार बार फिसल्ती है सुई वक्त

की सीलन से

बार बार जिन्दगी हौसलों से उसे

जकडती है

कि कहीं छोर छूट ना जाये!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract