निर्मल जल
निर्मल जल
निर्मल जल हूँ बहता रहता
अपनी रौ में ही हूँ,
मुझे कमजोर समझने की
ग़लती तुम मत करना,
कठोर निष्ठुर भी मैं बन जाता हूँ।
जल हूँ जीवन हूँ,
यह तो सब जग जाना है।
गर करोगे मैला,
विकराल रूप मैं धर लेता हूँ।
अब भी नहीं होश सम्भाला तुमने,
फिर पीछे पछताना मत
प्रकृति का हूँ मैं अंश अनोखा,
मुझ बिन तुम रह नहीं पाओगे,
मैला मुझ को तुम करो न इंसा,
मैं सीमित हूँ अपने में।