बेशकीमती आजादी
बेशकीमती आजादी


कफ़न ओढ़ निकले आजादी पाने वो भारत माँ के दीवाने थे।
किस मिट्टी से बने वीर वो देश धर्म पर मर मिट वाले हीरे थे।।
लगा के मिट्टी चंदन माथे अपना तन-मन सजा रंग तिरंगी थे।
देख हौसले वीरों के जिसे भांपकर देश छोड़ भागे फिरंगी थे।।
सुन लो सुन लो मतवाले वह इस देश पर जान लुटाने वाले थे।
डिगा सके न जुल्म तुम्हारे तुम गोरे मन काले रखने वाले थे।।
मोहरे पासे तुम्हारे अपने शह मात की चालें तुमने बिछाईं थी।
फूट डालो और राज करो की झूठ-मूठ घटिया रीत चलाई थी।।
एक नई क्रांति की अलख जगाने वो ऐसे सच्चे क्रांतिकारी थे।
भाई-भाई को भाईचारे का पाठ पढ़ाते वह आंदोलनकारी थे।।
हँसते हँसत चढ़ गये फाँसी के फंदे पर देश के महानायक थे।
जान लुटाई माँ भारती के चरणों में निस्वार्थ निडर बालक थे।।
झुकने दिया न अपना स्वाभिमान देशप्रेम ही जिनका नारा था।
माँ भारती का कर्ज उतारने जीवन उनका सबसे ही न्यारा था।।
धन्य हो गई धरा वसुंधरा सपूत अनोखे दृढ़ी साहसी जनमे थे।
खाकर गोली सीने में रक्तरंजित से हँसते हुए गाते कलमे थे।।
मत भूलो इस आजादी को पाने में कितनों ने गोली खाई थी।
वीरों ने प्राणों की आहूति देकर ये बेशकीमती आजादी पाई थी।