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कवि हरि शंकर गोयल

Abstract Comedy Classics

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कवि हरि शंकर गोयल

Abstract Comedy Classics

बधाई हो

बधाई हो

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"बधाई हो" दो शब्द जो सुनने में सबको 

बहुत अच्छे लगते हैं

इन शब्दों को बोलने वाले

और सुनने वालों के अधर

मुस्कुराहट से खिल उठते हैं। 


तीज त्यौहार पर 

नौकरी लगने पर या 

शुरू करने व्यापार पर 

सगाई, शादी का अवसर हो 

या "गुड़ न्यूज" की बात पर 

छोटा से छोटा मौका हो 

या एचीवमेंट अनोखा हो 

हर जान पहचान वाला 

कहता है "बधाई हो जी बधाई हो" 


बधाई देने वाले "विशेषज्ञ" 

किन्नर कहलाते हैं 

"गुप्त सूत्रों" से सूचना पाकर

बिन बु

लाए आ धमकते हैं 


"इक्यावन हजार से कम नहीं'

ऐसा कहते हैं वे 

नहीं देने पर "बेहयाई" पर 

जल्द उतर आते हैं वे। 


"जजमान बेचारा" बधाई भी 

रो धोकर स्वीकार करता है 

और मन ही मन उन किन्नरों 

के लिए गालियां भी बकता है


मगर , बधाई का अवसर

सब रंज भुला देता है 

ऐसा सुअवसर भगवान

कभी कभी ही तो देता है। 


प्रतिलिपि के सभी लेखकगण भी 

बधाई के पूरे पूरे हकदार हैं 

अपनी खूबसूरत रचनाओं से रोज

सजाते रंग बिरंगा संसार हैं।। 


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