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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Classics Inspirational

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Classics Inspirational

खोई हुई चाबी

खोई हुई चाबी

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4

🌸 खोई हुई चाबी 🌸
✍️ श्री हरि
🗓️ 4.12.2025

वह चाबी जो हँसी के द्वार खोलती थी,
जिससे हर सुबह उजाले में ढलती थी,
जिसके एक स्पर्श से
मन के सूने कक्ष में
परमानंद का दीप जल उठता था—
न जाने आज वह चाबी
कहाँ खो गई…!

घर वही है, आँगन वही,
दीवारें भी उतनी ही खड़ी हैं,
पर चेहरों पर चिंता की रेखाएँ,
आँखों में थकान की परछाइयाँ,
और हृदय के ताले में
जमी हुई सी उदासी—
सब कह रहे हैं
कि कोई अनमोल वस्तु
हमसे बिछुड़ गई है।

क्या वह सोने-चाँदी की थी?
नहीं…
वह बाजार में बिकने वाली चाबी नहीं थी,
वह तो प्रेम की चाबी थी—
जो दिल के बंद कपाट खोलती थी,
जो रूठे पलों को मना लेती थी,
जो काँटों में भी
फूलों की महक भर देती थी।

वही चाबी
जिससे मन का दरवाज़ा खुलते ही
जीवन उत्सव बन जाता था,
हर श्वास गीत बन जाती थी,
और हर दृष्टि प्रार्थना।

आज वह चाबी खो गई है,
इसीलिए रिश्ते जंग खा रहे हैं,
इसीलिए शब्द चुभने लगे हैं,
इसीलिए आँखें हँसते-हँसते भी
भीग जाती हैं।

आओ!
उस खोई हुई चाबी को फिर ढूँढें—
तिजोरियों में नहीं,
भीतर के अँधेरे कोनों में,
अपने ही संकीर्ण अहंकार के नीचे,
स्वार्थ की धूल में दबी हुई।

वह चाबी मिल जाएगी
जब हम बिना कारण किसी को गले लगाएँ,
बिना शर्त किसी को माफ करें,
और बिना स्वार्थ
किसी के दुख को अपना बना लें।

क्योंकि जीवन की तिजोरी
किसी ताले से नहीं,
प्रेम की चाबी से ही खुलती है।

प्राणी मात्र से प्रेम करो—
यही जीवन का सार है,
यही साधना है,
यही भगवान की मौन आज्ञा है।

अगर वह चाबी मिल गई,
तो जीवन सफल हो जाएगा,
और यदि नहीं मिली—
तो सारी चाबियाँ होते हुए भी
हम हमेशा ताले के बाहर ही खड़े रहेंगे…। 🌿


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