एक चाय वाला
एक चाय वाला
🥣 एक चाय वाला 🥣
💐 भावना, करुणा और श्रम का संगम 💐
✍️ श्री हरि
🗓️ 10.12.2025
भोर की आँखें खुलती नहीं,
वह उससे पहले जग जाता है,
अँधेरे की गोद में बैठकर
दिन का उजाला पकाता है।
चूल्हे पर चढ़ी केतली में
उबलते हैं उसके अरमान,
चीनी कम पड़े या ज़्यादा
रोज़ वही मीठा इम्तिहान।
फटी हथेली, झुकी कमर,
पसीने की चादर ओढ़े,
वह हर घूँट में घोल देता है
अपनी उम्र के टुकड़े थोड़े थोड़े।
कभी बेटे की फ़ीस की चिंता,
कभी माँ की टूटी खाँसी,
भाप में भीगती आँखों से
टपक जाती अनकही उदासी।
लोग आते हैं, चाय पीते हैं,
हँसते हैं, झगड़ते जाते हैं,
वह वहीं खड़ा मिलता है
उसके सपने ढलते जाते हैं।
उधारी के रजिस्टर में सोया
उसका आज, उसका कल,
कर्ज़ की भट्टी के नीचे दबा
उसका हर एक उजला पल।
शाम ढले जब थक जाती सड़क,
खामोश हो जाता शहर का शोर,
वह आख़िरी कप बनाते-बनाते
बचा लेता है थोड़ी-सी भोर।
न सिंहासन, न छत्र चाहिए
न ताजमहल, न राज-पाट,
फिर भी हर दिन वह गढ़ता है
मेहनत से अपनी औक़ात।
एक चाय वाला—
जिसकी उँगलियों में जलन है,
आँखों में नमी,
साँसों में धुआँ,
और दिल में
जीने की जिद्द से भरी
एकअटूट प्रार्थना। ☕
