बेसरन वैली प्रोम्प्ट -18
बेसरन वैली प्रोम्प्ट -18
उसने कहा, बेसरन वैली , दीदी स्विट्जरलैंड अलबेली।
मेरे घोड़े से चलिएगा, ऊपर से दिखलाऊं पूरी बैली।।
हमने बात मान ली उसकी, दो घोड़े तब बुक करवाए।
एक था राजा नाम हरी सिंह, दूजा राजकुंवरि सहेली।।
मुझे बिठाया राजकुंवरि पर, पति को हरी सिंह घोड़े पर।
लगाम हाथ मेरे की पकड़ी, पति का छुट्टा ज्यों नार नवेली।।
ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर, चलने के अभ्यस्त थे दोनों ही।
मैंने सुख पाया ज्यों पुरातत्व काल में पहुंच हूंँ अकेली।।
कितने पेड़ खड़े साधकर मिट्टी भूमि की बांध समय की।
जड़ें ऊपरी हिस्से में भी, दिखतीं थीं जैसे कोई हो पहेली।।
कितना सुन्दर सफर सुहाना, मगर रास्ता बड़ा ही डरावना।
एक सिरे पर धरती रमणीय, नीचे देखी घाटी स्वप्न सजीली।।
मेरी घोड़ी पीछे -पीछे, आगे महाराजा हरि सिंह जी घोड़ा।
लड़का बातूनी निगोड़ा, कहता 'मीरा'आप बड़ी छैल छबीली।।