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Rashmi Sinha

Comedy

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Rashmi Sinha

Comedy

सरफेस

सरफेस

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शादी नई नहीं,

पुरानी थी,

एक, दूजे की आदतों से,

विद्रोह करने की ठानी थी,

हर बात में तू-तू मैं, मैं

हो जाती थी,

छोटी सी बात,

बतंगड़ बन जाती थी.

श्रीमान जी, सुबह सुबह ही

उठकर ड्राइंगरूम में आये,

थोड़ा फ्रेश---थोड़ा मुस्कुराए,

पत्नी हाजिर थी,

चाय के प्याले के साथ,

पर थोड़ी ही देर में,

श्रीमान जी भन्नाए,

सुधा---, चिल्लाए,

क्या है?? अब क्यों गुर्राए?

तुम कब सलीका सीखोगी?

हर सरफेस पर---

समान नज़र आये,

तंग आ चुका हूँ,

सोफे पर किताब,

टेबल पर रिमोट--

दवाइयां,

चश्मे का केस,

बिसकिट्स के पैकेट--

डायनिंग टेबल पर,

लाई सब्जियां औंधी पड़ी हैं,

और ये जूठे कप?

नाश्ते की प्लेट?

क्या इतने महंगे फर्नीचर,

सिर्फ इस

लिए जुटाए?

कहाँ बैठूं?

तुम्हारे सर पर---

हर सोफा समान से लैस,


पर मैं तो तुम्हारे सर पर भी नहीं बैठ सकती?

गंजे सर से फिसल,

कौन अपनी हड्डियां तुड़वाये?

पत्नी के दुर्वचन आये,

मजाक मत करो---

पति महोदय अब,

भौंकते नजर आए,

पूरे दिन यही नज़ारा था,

तो तय था, पत्नी ने,

खुद को नहीं सुधारा था.

भिड़ते-भिड़ते दोनों ही 

पस्त नज़र आये,

लेटे बिस्तर पर,

अब दोनों ही---

कुछ शांत नजर आए,

कुछ ही देर में पत्नी को,

महसूस हुआ कंधे पर,

एक हाथ---

अब पत्नी के,

गुर्राने की बारी थी,

जीती, जगती नारी हूँ,

"सरफेस" नहीं हूँ,

जहां रख रहे हो अपना हाथ,

बेशक उड़ लो हवा में----

खबरदार जो सरफेस समझ,

हाथ टिकाए-–-



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