अध्यक्ष हो अपना
अध्यक्ष हो अपना
भाषण देनी हो या करनी हो कविता पाठ ।
कार्यक्रम अध्यक्ष से, कर लो यारी गाँठ ।।
हाथ जोड़ प्रणाम कर, मंद-मंद मुस्काये ।
चंपी-झंपी भी करो , बीड़ा पान खिलाये ।।
शरणागत हो कहो, ‘भगवन’ मैं असहाय ।
एक तुम्ही अध्यक्ष जी अंतिम मोर सहाय ।।
आर्डर लै भाषण करो, मिलैगी पूरी छूट ।
श्रोता आयोजक भले चाहे जायें रुठ ।।
सारा टाईम आपका, शर्म करो ना भैया ।
डर कैसा, जब कोतवाल भये हों सैंया ।।
स्वार्थ नीति है यही, सयानों का भी कहना।
डर कैसा आसंदी पर, अध्यक्ष हो अपना ।।