अध्यक्ष हो अपना !
अध्यक्ष हो अपना !
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भाषण देनी हो तुम्हें या करनी हो कविता पाठ।
कार्यक्रम अध्यक्ष से, कर लो यारी गाँठ ।।
हाथ जोड़ प्रणाम कर, मंद-मंद मुस्काये ।
चंपी-झंपी भी करो, बीड़ा पान खिलाये ।।
शरणागत हो कहो, ‘भगवन’ मैं असहाय ।
एक तुम्ही अध्यक्ष जी अंतिम मोर सहाय ।।
आर्डर ले भाषण करो, मिलेगी पूरी छूट ।
श्रोता आयोजक भले चाहे जायें रुठ ।।
सारा टाइम आपका, शर्म करो ना भैया ।
डर कैसा, जब कोतवाल भये हों सैंया ।।
स्वार्थ नीति है यही, सयानों का भी कहना।
डर कैसा आसंदी पर, जब अध्यक्ष हो अपना ।।