जनवासे में शोर मच गया
जनवासे में शोर मच गया
जनवासे में शोर मच गया
दूल्हे के दूर का फूफा रूठ गया
लेकिन....
न कोई उनको बैठे से उठाने आया
न चाय ही ट्रे से हाथ में पकड़ाने आया
न खाने पर सबसे पहले उनको बुलावा आया
न ही क्षमा याचना का किसी ने राग सुनाया
न रीति रिवाजों पर उनकी अगुवाई हुई
न ही न्योतने में उनकी कहीं सुनवाई हुई
मन ही मन कलपते,
नाराजगी जताने को तरसते
बेचारे फूफा!
फिलहाल हैं सबसे रूठे,
इसीलिए...
जनवासे में शोर मच गया
दूल्हे के दूर का फूफा रूठ गया...
क्यों ज्यादा है पूछ हो रही बेकार के रिश्तेदारों की ?
क्यों सब घेर के न करते हैं
सेवा टहल सिर्फ फूफा जी की?
आवभगत में क्यों है दिखती
भारी कमी
फुसफुसाहटों की आवाज़ भी तो अब तक न थमी
जनवासे में फिर शोर मच गया!
दूल्हे के दूर का फूफा रूठ गया...
उम्मीद में हैं फूफा बेचारे
कोई तो आए पाँव उनके दबाने
मिन्नते करे कोई बार बार
हाथ पकड़, कसमें दिलाने ,
पर जनाब अब किसको है फुरसत
आए दिन नखरे बेवजह किसी के क्यों उठाने!
क्यों न फूफा ही निकलें बाहर
शहनशाही गलतफहमियों से
साथ सबके हँसकर शरीक हों
परिवार की खुशी और रस्मों से
खत्म हो वो उनकी बात बात पर
नाराज होने की प्रसिद्ध कहानी
क्योंकि नाराजगी तो है अब बेकार और बेमानी
फिर न कोई शोर होगा ,
न कहीं कोई जग हँसाई
न ही फुसफुसाहटें पड़ेंगी घरभर में सुनाई
उनको भी सम्मान मिलेगा
जिसके हैं वो हकदार
बुआ को भी बेचारगी से न होना पड़ेगा दो चार
कोई फिर न कभी तंज कसेगा!
अरे देखो तो...
दूल्हे का दूर का फूफा रुठ गया ...
