हर राह तुम्ही तक जाती है
हर राह तुम्ही तक जाती है
किसी राह पे भी चल ले राही
हर राह तुम्ही तक जाती है
बस मुश्किल ये कि सीधी बात यहाँ किसी को समझ न आती है
किसी नाम से तुम्हें पुकारें वह सब मानते हैं ईश्वर है एक
ये अलग बात है मानव ने तुझको दे डाले नाम अनेक
जो दिया 'नाम' उसे मान श्रेष्ठ बिन बात के वह इतराते हैं
दूजे को गलत बताते पर सब तुझे ही पूजते जाते हैं
इस नादानी को देख के तू ऊपर बैठा हँसता होगा
पर देख धार्मिक अत्याचार दिल तेरा भी दुखता होगा
तूने जब धरती पर भेजा मानवता सिखाई तो होगी
अपनी इस श्रेष्ठतम रचना से आशा भी लगाई तो होगी
किसी गुण को अगर निखारा भी उसने अर्जित किया अहंकार
सच्चा गुण तो बस एक ही था
'मानवता' वही किया तार तार
छोटी सी बात है पर उसको यह कौन सिखा पायेगा भला
जो गलती जानते बूझते हो उसकी कोई माफी होगी क्या?