मेरे अल्फ़ाज़
मेरे अल्फ़ाज़
आँखों से ही पढ़ लो न मेरे दिल की बात
वैसे कम तो नहीं हैं मेरे पास मेरे अल्फ़ाज़
पर बात तो तब है बिन बोले ही समझ सको
मेरे दिल के भीतर छुपे हुए हैं कौन से राज़
जलतरंग सा बज गया क्यों यह मेरे दिल में
तुमने छेड़ दिया है जाने कौन सा साज़
इतना सताना किसी को देखो अच्छा नहीं
अब तो शरारत से तुम अपनी आओ बाज़
कनखियों से क्यों देख देख मुस्काते हो
कैसे बतायें आती हमको कितनी लाज
तिरछी निगाहों का जो किया है दिल पर वार
मुँह में ही जम गये अब तो मेरे अल्फ़ाज़।