गरीबी और कुर्सी
गरीबी और कुर्सी
सारा कुनबा आ जुटा, तिल भर हिला न पाय।
गरीबी है या अंगद का पग, यही समझ न आय।
गरीबी हटाऊँ कसम से, यह हल्ला दियो मचाय।
कूटो छाती आठ दिन, तब सिंहासन पक्की होय।
गरीबी तू सबसे भली, सिंहासन दे जाये !
होती अबला नारी जो, तो लेता ब्याह रचाये !!
रुपया-जिंस हैं बँट रहे, निर्लिप्त रहे क्यों कोई।
मुफ्त खोर हैं बढ़ रहे, देख गरीबी रोई।।