पलकें झपकी नहीं !
पलकें झपकी नहीं !
रात भर सोया नहीं मैं
सोचता तुमको रहा
चांदनी खिड़की पर खड़ी रही
मैं खिड़की पर बैठा रहा
चांदनी से बातें ही बातें हुई
रोशन सितारों को मैं तकाता रहा
नींद मेरे पास में थी।
पलकें मगर झपकी ही नहीं
मुझसे नाराज थे
चादर, बिस्तर, तकिये मेरे
उनको सोना था मगर
मैं बस सोचता तुमको रहा
मेरी इन आंखों में उलझे हैं।
ख्वाब कितने तुम्हारे
क्या इन्हे जानोगी तुम
इक बार बस तुम पास मेरे
आकर तो रहो
देखना फ़िर मानोगी तुम
रात मुझसे अक्सर पूछा करती है।
एक सवाल जुल्फ़ में जो
उलझती हवा मुझसे कहती है
उसे भी मलाल है
क्यूं रात भर सोता नहीं मैं
तुमने कभी जाना ही नहीं।
किस तकलीफ में जी रहा हूँ मैं
रात भर सोया नहीं मैं
सोचता तुमको रहा !

