इस सर्दी में
इस सर्दी में
सुनो
इस सर्दी के लिए
बुना है इक रिश्ता मैने
समर्पण की सिलाइयों से
स्नेह का सूक्ष्म धागा और
अहसासों के चटख रंग लिए
नजाकत के नर्म पोरों से
डाली उमंगों के
कोमल भावों की बुनती
तन्हाई में करते हुए
तुम्हारी खामोशी से बातें
हो चुका है अब
ये रिश्ता तैयार
पहनोगे कब
बस यही है इंतज़ार।

