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Bhavna Thaker

Romance

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Bhavna Thaker

Romance

" अनकहे रिश्ते "

" अनकहे रिश्ते "

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आज मिले हो फुर्सत में तो 

कुछ फ़लसफ़े साझा कर लूँ

तुम से तो करार आए,

मेरे अनकहे, अघोषित स्पंदन से

तुम वाकिफ़ कहाँ..!

 

क्या तुम जानते हो ?

मेरे हर पहलुओं में छलो

छल तुम भरे हो,

मैं भीतरी सतह से निमग्न हूँ

संपूर्ण तुम्हें आधीन

तुम कहोगे मैं पागल हूँ,

शायद हाँ हूँ पागल.!


जज़्बा नहीं इस सम्मोहन से

बाहर निकलने का,

एक अनूठी इबारत रची है

मेरे तसव्वुर ने,

कैसे किसी स्याह डब्बे में

बंद कर बहा दूँ कालजयी नदियों में 

तुम सोचो.!


कभी धूमिल शाम के पहलू में

बैठे तुम तुम ना होकर मैं बन जाऊँ  

कैसा महसूस होगा ?

बस यही तो मेरे मनोभाव है

तुम्हारी अकुलाहट समझ सकती हूँ 

तुम्हारी चोईस नहीं एसे फ़ितूर.!


तुम्हारा दोष नहीं 

मैं खुद को तुम में स्थापित

करने में नाकामयाब रही.! 

चलो जिस रिश्ते की नींव ही नहीं रखी

उसके ध्वस्त होने का मातम क्या मनाना.! 


बस यूँ ही ज़रा से बाँटने चाहे एहसास मैंने 

अब मन कुछ हल्का महसूस कर रहा है..!

तुम भी मैं बन जाते तो

फलस्वरूप एक नया आकाश मिल जाता

मेरी कल्पना के संसार को,

सुनो ज़रा चेहरा इधर करो,

चेहरे पर ये टिश कैसी उभर आई.!


उफ्फ़ हर बार एहसास को छुपाना

कोई तुमसे सीखें, 

जो जितना मैंने कहा उतना ही तो

कहना है पर तुमसे ये कभी नहीं हुआ।

अब तो कुछ बोल दो शायद

अनकहे रिश्ते को कोई नाम मिल जाएँ।


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