दो घर की जुड़ी हुई एक दीवार
दो घर की जुड़ी हुई एक दीवार
दो घर की जुड़ी हुई एक दीवार
जिसकी रीढ़ की हड्डियां
मिली हुई है एक दूसरे से
सांसो की सरसराहट और दिल की गुफ्तगू
रूह से सारी बाते फुसफुसा रही है आहिस्ता से
और अदला बदली होती जा रही है
दो घर की भावनाओं में
क्रोध प्रेम स्नेह स्पर्श रंगत एक दूसरे क हँसी
रोने की ज़ोर ज़ोर वाली सिसकियाँ
इन दोनों दीवारों के प्रेम को ख़त्म करने के लिए
कीले ठोक कर इन्हे चोटिल करने के नाकाम
किस्से भी हैं लोगो के
और तो और करीबियों द्वारा मज़हबी कैलेंडर की
मोहरें भी लगाई गयी है इनके सीने पर
केसरी और हरे लिबासों वाली ये दिवानी दीवारें
एक दूसरे की पीठ से कुछ इस तरह पीठ मिला कर बैठी है
मानो इश्क़ वाली शाम मे दो आशिक
नदी के किनारे बैठे हो और
सांझा कर रहे हो अपने इश्क़ के अफ़सानों को
दोनों की नज़रे नहीं मिली है लेकिन
उल्टी धड़कनें ज़रूर रूबरू हो रही है
सिर से सिर टकरा रहा है और सोच दिमाग की
दहलीज़ लांघ कर एक दूसरे के
आर पार भेज रही है संकेत
एक ऐसा ख़त नुमा संकेत
जिसकी शुरुआत प्रिये मोहब्बत से होती है
जिसका हर अक्षर लम्बी गहरी साँसों को
रोक कर आहिस्तागी से उकेरा गया है
और इसे पढ़ते वक़्त माहौल में उठने वाली महक
एक हवन और लोभ की मिली जुली गंध से सुसज्जित है
वो दो इश्क़ मे डूबी हुई दीवारें
जिन पर प्रेमियों ने गोदा है अपना नाम
वो एक दूसरे को पीठ ज़रूर किए बैठी है
लेकिन एक दूजे से बेइन्तहा इश्क़ भी किए बैठी है।