इश्क का विद्यालय
इश्क का विद्यालय
मैंने उसने मिलकर इश्क़ के विद्यालय मे दाखिला लिया था
विषय नया था और प्रेम भाषा से हम दोनों ही थे अंविग्य
साथ मे रह कर सिखा था दोने ने इश्क़ को
पढ़ना समझा और उसके प्रश्नों को हल करना
चिट्ठियों का सही उपयोग, बोसे की टिकिट और इत्र से महकता लिफाफा
विरहा के पहाड़े, परिस्थितियो से जूझने का गणित और रूठने पे मनाने का विज्ञान
हर विषय को समझ के उसकी परीक्षाओ मे उत्तीर्ण होना
किस तरह के प्रश्न पत्र को किस एहसास की कलम से लिखना है
नियमओ का पालन करना
दूसरे की कॉपी झाँक के नकल न करे बिना लिखने का विषय है प्रेम
किसी ऊनी गोले से स्वेटर बुन ने के लिए फंदे बनाने जैसा है ये कार्य
सहेज के रखना पढ़ता है इस विषय की कॉपी को
वरना जेल या लीड किसी भी पेन से क्यूँ न लिखो हो लेकिन
पानी पढ़ने पर पूरे पन्नो पे गहरे रंग की बेरुखी छोड़ देता है
बड़ा ही आनंद से भरपूर है ये विद्यालय
यही आ के तो पता चलता है मुझे के एक
दहलीज़ को पार करने के बाद कितना लंबा सफर है
असमान ज़मीन से कोसो दूर है
लेकिन मेरे और उसके लिये एक दूसरे को देखना ही चाँद सा है
यहा आ के दिल की रफ्तार को भी नाप लेने का हुनर सीख लिया है मैंने
कदमो के नक्शे, जीवन यात्रा, मौसम का साथ,
ग्रीष्म मे एक दूसरे की परछाई की छाँव बरसात में
इश्क़इया छीटे और जाड़े मे दो जिस्म की तपिश
तेरी मेरी वाली लड़ाई हम होके लड़ने का मज़ा
सिर से सिर टकरा कर प्रेम इज़हार के मायने
मुद्दातो का इंतज़ार तो कभी जल्दी लौट आने का शृंघर
दुनिया की सारी बड़ी चीज़े अब उसकी और मेरी अंजुली में
महफ़ुज़ है हर एहसास हमारे घरोंदे का
पहरेदार हो के हमारे इर्द गिर्द ही घूमता रहता है
और मैं, वो, तेरा, मेरा इन सब चीजों का एक ही निचोड़ निकलता है
के इश्क़ मे हमने आज क्या सीखा....।