अब लौट आओ
अब लौट आओ
तुम्हारे न होने पर भी
तुम्हारी उपस्थिति होती है
इस घर की खिड़कियां तुम्हारी याद में अब भी रोती है
सूरज की वो पहेली किरण जो झरोखो से
प्रवेश कर के सीधा तुमसे लिपट जाती थीं
वो अब भी कर रही है तुम्हारा इंतज़ार
तुम्हारे जिस्म की महक
हवाओ में है अब भी बरकरार
पुकार रहा है हर कोना इस घर तुम्हें
पुकार रही है तुम्हें वो दीवार
जिसमें छपे है तुम्हारे
लाला सुर्ख हाथों के निशान
आंगन के वो पोधे मुरझा गए हैं
चिड़ियों की चेहक भी
अब हो गयी है गुमनाम
ये घर अब अपनी अंतिम सांसे ले रहा है
अपने आखिरी समय में
बस ले रहा है बार बार
तुम्हारा ही नाम
वो दरवाज़े जो तुम्हारे
स्वागत में हमेशा खुले रहते थे
वो अब मातम मना रहे हैं
इस घर की आखिरी अवस्था देख कर
सुनो शायद कई ज़िंदगीया बचाई जा सकती है
अगर तुम लौट आओ फ़िर एक बार