किताब में छुपा गुलाब
किताब में छुपा गुलाब
बरसों बाद नजर यह आई,
किताब में दबा तुम्हारा गुलाब,
बड़े प्यार से, जिसे दिया था तुमने,
कोई देख न ले इसे, झट से मैंने,
किताबों में छुपा रख दिया था।
पन्नों में दबकर सुख-सिमट गया,
तुम बदल गए, बदल गया था साल,
कक्षा बदली, पुस्तक भी बदल गया।
जैसे दिलों में दब गए, तुम्हारी बातें,
वैसे ही वह भी, पन्नों के बीच दबा रहा।
चुपचाप सुनाता, तेरी करनी के किस्से,
कैसे तुम्हारी नियत खराब हो गई थी।
न जाने कितने बहकाने-भटकाने की,
कुटिल कोशिशें रही थी, सदा तुम्हारी,
शुक्र थी, कि मेरी मति मारी नहीं गई,
बेड़ा गर्क कर लेती साथ मां-बाप का,
यदि हो जाती तेरी उन बातों में अंधी,
मन शांत कर, सोच-विचार न किया होता,
पछताने के सिवाय कुछ बचा न होता,
सौभाग्य जो समय से मेरी आंखें खुल गई,
नजर आ गया जो दिखता न था पर्दे से,
तेरी भोली सूरत के पीछे का,
क्रूर चेहरा नजर आ गया था।
किताबों में छुपा गुलाब मौन,
तुम्हारी कहानी सुनाता रहा।
यह सब अब मैं तुम्हें सुना न रही,
आगाह कर रही हूं, उन बहनों को,
भूलकर भी न पड़ना कभी इस,
रोज-डे-वैलेंटाइन-डे के पचड़े में,
मातृ- पितृ पूजन-दिवस मना लेना।
गर रहा माता-पिता-गुरु का आशीर्वाद,
कदमों में शीष झुकाएंगे, एक से एक,
प्यार भरी बातों से, कभी भटकना नहीं।
पल की खुशी, आगे बस सब धोखा है।
अभी आपकी आंखें इतनी पारखी नहीं,
भोले हो, न ज्ञान है कुछ भी दुनिया का,
समझ ना पाओगे बहरूपियों को,
भेष बदलकर सदा ही घूम रहे हैं।
नजर आप पर बुरी है उनकी,
भटका कर रास्ते पर छोड़ देंगे।
आदमी नहीं, एक वस्तु सा व्यवहार होगा।
बदल देंगे, आपको आपसे ही छीन कर।
जल बिन मछली सी तड़प मर जाओगी,
किताब में दबा मुरझाया गुलाब,
सारी कहानी सदा याद दिलाएगी।

