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Ram Binod Kumar

Abstract Classics Inspirational

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Ram Binod Kumar

Abstract Classics Inspirational

ऊंची दुकान फीके पकवान

ऊंची दुकान फीके पकवान

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देखने में लुभावन, लगे मनभावन,

पर मटेरियल की कोई गारंटी नहीं।

कैसे बना ,और कितना जहर है भरा,

भले ही टिके न अपने रूप में दो दिन,

हो जाए चाहे जितना जल्दी में खराब।


अंदर हो घटिया पर, दिखे न कुछ जनाब,

ऊंची दुकान और फीके पकवान।

मिला गर्मजोशी से, फिर बढ़ाई दोस्ती,

पर जाना दु:खी है, जरूरत है मदद की।


फिर झट से मुंह फेरा, आगे सुना भी नहीं,

कितना भी बुलाया-मनाया-गिड़गिड़ाया।

पर रेंगी न उसके, कान पर भी कभी जूं,

फेरी नजर ऐसे-जैसे कभी जानता न हो,

ऊंची दुकान और फीके पकवान।


देखा चंचल -चितवन, रूप सुघड़ सा,

सूट-बूट-टाई में, कोई कमी भी न थी।

बातें ऐसी ,सुने तो कोई दंग रह जाए,

हाय-हेलो करे वह जन्मजात अंग्रेज सा।


पढ़ता भी देखो वह इंग्लिश मीडियम में,

दिस-डेट की सदा, तोड़ता रहता है टांग।

पढ़ता जिले का नामी, सीबीएसई स्कूल,

भरते हैं मोटी फीस, उसके पापा रोकर।


जाता स्कूल बस में, वह भी ऊंघ - सोकर,

ऐसा स्कूल का सफर झांकते जैसे बंदर।

अंग्रेजी क्या ,मात्रृभाषा की समझ भी नहीं,

पढ़ते सदा अंग्रेजी ,हिंदी भी समझते नहीं।


कैसी यह नव शिक्षा है, कैसा यह ज्ञान ?

मान न मान बन जाएंगे, अंग्रेज महान

ऊंची दुकान और फीके पकवान

बने संवरे ऐसे जैसे, लड़कियां हो फेल,

कंघी रखे सदा ,अपनी जेब में हर पल।


साइकिल घूमाए सदा, ट्यूशन भी जाए,

पर घर पर पढ़ने को, फुर्सत न कभी उसे।

मीडिया पर ऑनलाइन, रहतें उसके यार,

एक-चार नहीं, उनके हैं बहुत - भरमार।


पूछे तो उत्तर न दे कोई भी प्रश्न के,

पढ़ना -लिखना न ,अब इनके बस का।

पर बातें ऐसी की पुल, बना दे हवा में,

उड़ती खुशबू से ताजी, रहता हर पल।


किसी काम में अबतक, हुआ न सफल,

पर बातों के चलते, उसके तीखे ही वाण।

ऊंची दुकान और फीके पकवान।

चंचल परी सदा, बहाती चले भींनीं -गंध,

दिखे कोई अकेला तो, कस दे भी तंज।

अपने न भाए, वह सदा उनसे रहे रंज।

समझे भी न बातें, कभी मां-बाप की,

सही बात बोल दें तो, खैर नहीं आपकी।


रात भर करे वह अब, ऑनलाइन पढ़ाई,

दिन में फुर्सत नहीं कि ,वह देखे किताब।

सोचे न, नए जमाने की पढ़ाई है जनाब,

बस देखते जाए आगे-आगे होता है क्या।

ऊंची दुकान और फीके पकवान।


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