मैं हूं......!
मैं हूं......!
मैं हूं राजा गीर्वाण,मैं तो बड़ा बुद्धिमान,
ना कभी रूठूं, जाऊं मान,माने जहांन ।
दिन में सूरज हूं, अंधेरी रात में चंदा,
ना रोऊं ना डरु, मैं हूं ऐसा नेक बंदा ।
अकाल में बरसात हूं,खेतों में अनाज हूं,
गीतों की साज हूं, मैं बड़ा लाजवाब हूं ।
फूलों की महक हूं, तितली की चमक हूं,
मैं तो बड़ा बुद्धिमान,मैं हूं राजा गीर्वाण ।
आशा की गीत हूं, जीवन में प्रीत हूं।
सबका ही मित हूं, रघुकुल कि रीत हूं।
झरनों की झर-झर,नदियों की कल- कल,
बालकों की हलचल, बालिका की गीत ।
निश्छल सा प्रीत हूं, सबका मन मीत,
तितली का रंग हूं , फूलों का गंध।
मोरों का पंख हूं ,समुद्र का शंख,
गीतों की राग हूं ,माथे का ताज।
वायु का प्राण हूं, गुड़ियों का अरमान,
दोस्ती की शान ,मैं हूं राजा गीर्वाण।
फसलों का अन्न हूं, शरीर में मन,
जेब का धन हूं, पौरूष का प्रण।
नदियों का जल हूं,सांसों का हरपल,
लेखक की लेख हूं,रागी का राग ।
पेट की आग हूं,बसंत की बाग,
कोयल की कूक हूं ,बातें दो-टूक हूं।
सुलगते आगों पर लगा फूंक हूं,
संतों का डेरा हूं, जोगी का फेरा हूं।
न तेरा- मेरा हू,, आत्मा का बसेरा हूं,
गोपिका का उद्धव हूं, माधव की बंसी,
बंसी की तान हू, बालक नादान हूं,
सदा मेहरबान ,मैं राजा गीर्वाण हूं।