बच के ही रहना....
बच के ही रहना....
बच के रहना भाई-बहनों ,
छुपे मिट्ठू मियां से,
बोलेगा मीठे-मीठे बोल,
कानों में मिश्री घोलेगा।
मीठा-मीठा बना रहेगा ,
बाद में जहर ही बोलेगा।
पहले देखेगा जांच कर,
कितना करते हो बर्दाश्त।
जांच कर लेगा फिर तो,
उसका कहर ही डोलेगा।
करता रहेगा सदा ही, अपनी फरियाद,
जैसे वह जग का, सबसे दुखियारा हो।
खुद रखेगा सदा, तुझे सताने की नजर,
पर खुद को सताया हुआ, कहता रहेगा,
अगर चल जाए, उसका जरा बस,
तो वह तुम्हें कभी, सांस भी लेने न दे।
अगर एक बार मान ली, उसकी बात,
तो एक के बाद एक, सदा अपनी ही,
बेहुदी बातें, मनवाना सदा चाहेगा ।
कहेगा कुछ मगर, करनी उसकी उल्टी होगी,
अपने विचारों को तुम पर, सदा थोपता रहेगा।
जबतक तुम बदल न जाओ बिल्कुल,
अगर जब तुम बदलना नहीं चाहोगे,
फिर तेरा जीना भी, वह कर देगा दूभर।
तुझ पर ही नहीं, उसकी जहां पर है नजर,
तेरी नजरों को धोखा देकर ही, मानेगा ।
समझ नहीं तुझे, जब रोएगा तब जानेगा ,
उसके दिल में कोई भी माया- मोह नहीं।
नित्य वह इसी का करता है अभ्यास,
संभल जा, तू सोच, बात मान ले मेरी।
वरना यदि पड़ जाएगा, घनचक्कर में,
फिर पछताएगा सिर धुनते रह जाएगा।
तेरा रूप रंग सब कुछ, ही बदल डालेगा ,
नाम ही नहीं, तेरी पहचान भी मिट जाएगी।
बदलेग खानपान रामकृष्ण भी भूल जाओगे,
राम-राम तो दूर, माता को सिर न झुकाओगे।
इतने से भी तेरी व्यथा, कभी कम न होगी,
मां-बाप और समाज, सबसे कट जाओगे।
चैन सुख-नींद सब खो दोगे,
बस मशीन बनकर मौन सदा ही,
केवल उत्पादन यंत्र बन जाओगे।
अगर करोगे कभी आनाकानी,
तो याद आएगी याद तेरी नानी।
तेरे सामने कोई मार्ग न बचेगा,
या तो घुट-घुट कर ही जीओगे,
या फिर जीते जी मर जाओगे।
इतना सब कुछ होने से पहले ,
कभी ऐसा भी हो जाए, तो आश्चर्य न करना,
यदि कहीं वस्तु समझकर, बोली लगा दे,
या फिर नीलाम कर दे ,तेरे अंग-अंग को,
तुम चाहते हो, तेरे रंग में कभी भंग न हो।
फिर संभल जा मेरे प्यारे भाई !
एक बार शांत मन से सोच लो।
बच के रहना तुम मिट्ठू मियां से ,
जो भेष बदलकर सदा घूम रहे हैं।